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Friday, June 15, 2007

यहां सुनिए—रंजिश ही सही । शायर हैं अहमद फ़राज़ । रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ एक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम आए राहत-ए-जां मुझ को स्र्लाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ माना कि मोहब्बत का छिपाना है मोहब्बत चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ Play Ranjesh ...